Friday, June 25, 2010

ऐसी प्राकृत संख्याए जिनके केवल दो गुणनखंड होते हैं , एक वह संख्या स्वयं एवं दूसरी (एक ) होती है , अभाज्य संख्या कहलाती है। अभाज्य संख्याएँ ज्ञात करने की विधि इरेस्टोथेंस नामक यूनानी गणितज्ञ ने खोजी थी , जिसे छलनी विधि कहते है। माध्यमिक शिक्षा मंडल मध्यप्रदेश तथा केन्द्रीय बोर्ड द्वारा अपने विघालयों में विभिन्न कक्षाओं में छलनी विधि से पढ़ाया जाता है।
अभाज्य संख्याओं की प्रकृति इतनी जटिल है कि अभी तक विश्व का कोइ भी गणितज्ञ पूर्णतः इसे समझ नही पाया है। इस संबंध में सन १८५९ में गणितज्ञ राइमन ने अपनी अवधारणा प्रकाशित की थी, यह अवधारणा भी इतनी जटिल है की अभी तक यह सिध्द नहीं हो पाया है कि यह सही है या गलत इस अवधारणा की जटिलता को देखते हुए सन २००१ में क्ले मेथेमेटिक्स इन्स्टिट्युट केम्ब्रिज मेसा चुसेट (अमरीका ) द्वारा इसे सिध्द करने वाले को १० लाख डालर का पुरस्कार देने की घोषणा की है , किन्तु अभी तक यह कोई सिध्द नही कर पाया है।
इस सम्बन्ध में मध्यप्रदेश सरकार के अनुसूचित जाती एवं जनजाति कल्याण विभाग सेंधवा जिला बरवानी में मंडल संयोजक जगदीशचंद्र करमा जो महेश्वर जिला खरगोन के निवासी है ने ऐसी गणितीय विधि खोज की है , जिसमें किसी संख्या तक कुल कितनी अभाज्य संख्याएँ बनेगी यह सीधे ही ज्ञात किया जा सकता है , और जब किसी संख्या तक कुल कितनी अभाज्य संख्या बनती है यह ज्ञात हो सकता है तो यह भी स्पष्ट है की अभाज्य संख्या किस प्रकार अन्य संख्याओं के बीच वितरित होती है यह परिभाषित कर सकते है की किसी संख्या तक कुल कितनी भाज्य और अभाज्य संख्याएँ बनेगी क्या म.प्र. सरकार या केंद्र सरकार श्री करमा द्वारा खोजी गई इस विधि का परिक्षण कर उनके नाम से इसका कापी राइट करवाकर अपने पाठयक्रम में संशोधन करेगी ? श्री करमा के सम्बन्ध में यहाँ यह उल्लेख करना भी उचित प्रतीत होता है की श्री करमा ने ज्योतिष विज्ञान की बारीकियों को भी बहुत गहरे से समझा है। श्री करमा हरोस्कोप या प्रशन कुंडली के माध्यम से किसी की समस्या को मात्र ५-१० मिनट में हल नहीं करते हैं वरन उसका समग्र अध्ययन कर सही निष्कर्ष देने में पूरा समय लेने के बाद निष्कर्ष देते है जो लगभग सही निकलता है।